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पुरानी पोस्टिंग

गुरुवार, सितंबर ०१, २००५
रोशनी की मीनारें


नगर सिंधु के प्रकाश स्‍तम्‍भ

posted by masijeevi | १:५३ पूर्वाह्न | 0 comments
इतिहास सो रहा है गहरी नींद

शहर का इतिहास सो रहा है गहरी नींद और हम मशगूल हैं तिजारत में उसके सपनों की।


LET HER SLEEP

posted by masijeevi | १:५२ पूर्वाह्न | 0 comments
बुधवार, अगस्त ३१, २००५
मुक्तिबोध से उधारी

रात के दो हैं,
दूर दूर जंगल में सियारों का हो-हो
पास-पास आती हुई घहराती गूंजती
किसी रेलगाड़ी के पहियों की आवाज
किसी अनपेक्षित असंभव घटना का भयानक संदेह




City sleeps

posted by masijeevi | ३:२० पूर्वाह्न | 0 comments
रविवार, अगस्त २८, २००५
वंदनवार शहर के




posted by masijeevi | ६:११ अपराह्न | 0 comments


Masijeevi

posted by masijeevi | ६:०८ अपराह्न | 0 comments
बुधवार, अगस्त २४, २००५


City in wait

posted by masijeevi | २:३७ पूर्वाह्न | 5 comments
रविवार, अगस्त १४, २००५
तनाव और मात्र तनाव

परियोजना का अंतिम चरण है तथा हमेशा लगता है कि अभी कितना कुछ बाकी है। पता नहीं कैसे होगा- होगा ही।

posted by masijeevi | ३:४३ पूर्वाह्न | 0 comments
बुधवार, जुलाई १३, २००५
शेष कादम्‍बरी

उपन्‍यास पढ़ा। बात है। पर क्‍या?
उपन्‍यास फर्मे से हटकर है। कुछ ग्‍लो‍रिफाई करने की जिद से मुक्‍त है। बांधता तो खैर नहीं पर झिंझोड़ता अवश्‍य है। इससे पहले लेखिका (अलका सारावगी) का कलिकथा बाया बाईपास पढ़ा था, वह इससे बेहतर था यकीनन किन्‍तु यह कुछ अलग है। अच्‍छा रहा।

posted by masijeevi | ७:११ अपराह्न | 0 comments
शुक्रवार, जून २४, २००५
इस दूती-प्रसंग के जोखिम

जी मेल जैसी सेवाएं जब आपको यह कहते हुए बहुत सा बेवस्‍पेस देती हैं कि अब आपको कुछ मिटाने की आवश्‍यकता नहीं है तो उसमें एक छिपी धमकी होती है- खबरदार अगर कुछ मिटाया तो...। क्‍योकि जितना आपका इनबाक्‍स भरा होगा उतने ही आंकड़ें इन सेवाओं के पास अधिक होंगे ताकि वे आपका और सटीक नक्‍शा बना सकें। लिहाजा जी-मेल ने तो अपनी सेवा में संदेश मिटाने की संविधा ही नहीं दी है। चालबाजी और अधिक बेनकाब हो जाती है जब उनकी प्राइवेसी नीति के छोटे छापों को ध्‍यानपूर्वक पढ़ा जाता है। वे मानते हैं कि आपके आंकड़े उनके पास अनंत काल तक सुरक्षित रहेंगे। दरअसल बेवस्‍पेस के अनंत समुद्र में हरेक व्‍यक्ति का एक खाका तैयार किया जा रहा है। इसमें आपके व्‍यक्तित्‍व की हर महीनता का ध्‍यान रखा जा रहा है आपसे आपकी हर निजता छीन ली गयी है और यह सब आप तक एक सटीक विज्ञापन पहुंचाने भर के लिए नहीं किया जा रहा है वरन सरकारों, गुप्‍तचर ऐजेंसियों, आतंकवादियों, बड़े व्‍यापारिक घरानों यानि जिसके पास पैसा या ताकत है उस तक आपकी जिंदगी का एक एक पहलू पहुंचा देने के लिए है। यह सूचना-पूंजीवाद की गुलाम व्‍यवस्‍था है। उसपर खाज में कोढ़ यह कि ऐसी स्थिति में जिस ओर आप अपने बचाव के लिए देखना चाहेंगे मसलन राज्‍य, कानून, अदालत, पुलिस आदि वे सब तो इस गोरखधंधे में शामिल हैं। सच्‍ची बात यह है कि इस देश का कानून आपकी निजता की रखवाली का कोई आश्‍वासन आपको नहीं देता। खड़गसिंह बनाम राज्‍य जैसे फैसलों से सुप्रीम कोर्ट ने जो थोड़े बहुत निजता रखवाली के प्रावधान किए भी हैं वे राज्‍य द्वारा किए गए निजता हनन पर लागू होते हैं। निजी प्रक्रमों द्वारा किया निजता हनन इसके दायरे से बाहर की चीज है। सच्‍चाई यह है कि भारत में जीने के अधिकार में ऐसी गरिमा से जीने का अधिकार शामिल नहीं है कि मुझे अपना प्रेमपत्र प्राक्‍टर एंड गेम्‍बल को दिखाने पर विवश न किया जा सके।

पुनश्‍च:

ब्‍लॉग बिगड गया था इसलिए पूरा खत्‍म कर फिर से नया बनाया है। देखता हूं कि पिछली पोस्टिंग हो पाती हैं कि नहीं।