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Once upon a time there WAS a King (in Nepal)

There goes the monarchy from Nepal. Elections to constituent assembly and results thereof has hammered the last nail in the 240 year old monarchy. Modernisation and other aspirations of Nepali people can now breath easy. With Maoist majority in constituent assembly has virtually ensured that Nepal will be a republic now. King will not have any role, not even a ceremonial one. Now prince cant keep mowing people with his SUV on the streets of Katmandu as he used to. He can't get people murdered at will.

King is already a hated creature. Vijay Gaur is very optimistic of the development in Nepal.

तीसरी दुनिया के मुल्कों की जनता रोशनी के इस स्तम्भ को जगमगाने की अग्रसर हो, यहीं से चुनौतियों भरे रास्ते की शुरुआत होती है। पूंजीवादी लोकतंत्र के भीतर राजसत्ता का वह स्वरुप जो वर्गीय दमन का एक कठोर यंत्र बनने वाला होता है, उस पर अंकुश लगे और उत्पादन के औजारों पर जनता के हक स्थापित हो, ये चिन्ता नेपाली नेतृत्व के सामने भी मौजूद ही होगी।

But Bhuvan Bhaskar is very skeptical, especially be cause he believes that Maoists are not democratic at heart and hence will not be ideal party to trust when it comes to inculcating the democratic values to a new democracy-

राजशाही के विरोध की लड़ाई लड़ रहे माओवादियों ने पिछले एक दशक में कितने गरीबों और निर्दोषों का खून बहाया है, कितनी मज़बूर और अबला स्त्रियों की प्रतिष्ठा नष्ट की है और कितने अबोध बच्चों को अनाथ बनाया है, इसका हिसाब तो खुद उनके पास भी नहीं होगा। सत्ता को बंदूक की नली से निकलने वाली कमोडिटी मानने वाले माओ के इन अनुयाइयों लोकतंत्र के जरिए सत्ता का सुख लेना कितना रास आएगा, यह तो वक्त ही बता सकता है लेकिन लोकतंत्र की अपनी इसी आस्था के कारण मुझे यह एक घोर विडंबना तो लगती है। पुलिस को बुर्जुआ समाज के शोषण का उपकरण मानने वाले ये 'रेडिकल लेफ्टिस्ट' सत्ता को प्रयोग किस तरह का समाज बनाने के लिए करेंगे, यह देखना सबसे ज्यादा रोचक होगा।

He see this is not merely a change in format of governance but also the change in total attitude towards the problems of people of Nepal.

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